भोरमदेव मंदिर पर निबंध : दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम पढ़ेंगे भोरमदेव मंदिर के बारें में जिसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है या कहां पर स्थित है ? क्या इसका इतिहास है ? और यह कब बनाया गया ? इसके प्राकृतिक सौंदर्य और बहुत सी ऐसी जानकारी आगे जानेंगे
जो शायद आप नहीं जानते होंगे इस पोस्ट के माध्यम से पड़ेंगे तो चलिए छत्तीसगढ़ के खजुराहो भोरमदेव के बारे में सब कुछ जान लेते हैं जिससे हम किसी भी जानकारी से वंचित ना रहे।
भोरमदेव मंदिर

भोरमदेव मंदिर मैकल पर्वत समूह के गोद में स्थित है जिसके आसपास पेड़ पौधों की हरियाली खुशनुमा वातावरण जैसे प्राकृतिक सौंदर्या के बीच बसा है। यह मंदिर नागर शैली में निर्मित है इसकी बाहरी दीवारों पर कामुक मुद्रा वाली मूर्तियाँ है जो बहुत ही सुंदर तरीके से उकेरा गया है।
यह सभी मूर्तियाँ कामसूत्र के विभिन्न आसन से प्रेरित हैं। इन्ही कामुक मूर्तियों की वजह से भोरमदेव मंदिर को खजुराहो के मंदिर और स्थापत्य कला के कारण उड़ीसा के सूर्य मंदिर से इसकी तुलना की जाती है
इस मंदिर परिसर में भोरमदेव मंदिर के अलावा यहाँ और भी मंदिर है जो अन्य हिन्दू देवी देवताओं को समर्पित है। इस मंदिर को 1089 ई. में फणी नागवंशी शासक गोपाल देव ने बनवाया था।
भोरमदेव मंदिर |
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देश – भारत |
राज्य – छत्तीसगढ़ |
निर्माता – राजा गोपाल देव |
मंदिर का पता – चौरागाँव, कबीरधाम छत्तीसगढ़ |
प्रवेश शुल्क – कोई प्रवेश शुल्क नही है |
मंदिर जाने का समय – सुबह 5:00 से रात्रि 9:00 बजे तक |
भोरमदेव मंदिर का बनावट
दोस्तों इस मंदिर के चारों ओर मैकल पर्वत समूह है यह मंदिर इन पर्वतों के बीच हरी-भरी घाटियां में यह मंदिर स्थित है मंदिर के सामने एक सुंदर तालाब है और मंदिर परिसर में एक सुंदर सा पार्क या फिर कह सकते हैं कि गार्डन हैं
जहां पर कैंटीन की सुविधा भी उपलब्ध है इस गार्डन में आपको एक नटराज की स्टैच्यू भी देखने को मिलेगी जो कि काफी आकर्षक है इस मंदिर की बनावट खजुराहो तथा कोणार्क के मंदिर के समान हैं इसलिए इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहते हैं।
भोरमदेव का इतिहास
यह मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है इस मंदिर को 11 वीं शताब्दी में नागवंशी राजा देव राय ने बनवाया था ऐसा कहा जाता है कि गोंड राजाओं के देवता भोरमदेव थे जोकि शिवजी का ही एक नाम है जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा है
मंदिर के मंडप में रखी हुई एक दादी मुछ वाले योगी की बैठी हुई मूर्ति पर एक लेख लिखा है | जिससे इस मूर्ति के निर्माण का समय कलचुरी संवत 8.40 दिया है इससे यह पता चलता है
कि इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा गोपाल देव के शासनकाल में हुआ था कलचुरी संवत 8.40 का अर्थ 10 वीं शताब्दी के बीच का समय होता है।
भोरमदेव की कला शैली
दोस्तों इस मंदिर का मुख पूर्व की ओर है मंदिर नागर शैली का एक उदाहरण है | मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है |
मंदिर एक 5 फुट ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है तीनों प्रवेश द्वार से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है मंडप की लंबाई 60 फुट और चौड़ाई 40 फुट है ।
मंडप के बीच में चार खंभे हैं तथा किनारे की और 12 खंबे हैं जो कि इस मंडप के छत को संभाल रखा है | सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक हैं मंडप में लक्ष्मी, विष्णु ,एवं गरुड़ की मूर्ति रखी हुई है तथा भगवान के ध्यान में बैठे हुए एक राज पुरुष की मूर्ति भी रखी हुई है
मंदिर के अंदर में बहुत सी मूर्तियां हैं जिनके बीच में एक काले पत्थर से बना शिवलिंग भी स्थापित है यहां पर एक पंचमुखी नाग की मूर्ति भी है साथ ही आप
देखेंगे कि यहां गणेश जी की मूर्ति नृत्य मुद्रा में तथा ध्यान मग्न अवस्था में राजपुरुष एवं उपासना करते हुए एक स्त्री – पुरुष की मूर्ति भी है |
यहां पर देवी सरस्वती की मूर्ति तथा शिव की अर्धनारीश्वर की मूर्ति भी देखने को मिलेगा और यह पूरा मंदिर पत्थरों से बना हुआ है जो कि मुख्य रूप से आकर्षक लगता है।
प्राकृतिक सौंदर्य
यहां पर मंदिर चारों तरफ से हरा भरा मैकल पर्वत से घिरा हुआ है यह छत्तीसगढ़ का खजुराहो भोरमदेव प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है पूरा परिसर स्वच्छ और चारों तरफ हरियाली ही हरियाली दूर-दूर तक यहां पहाड़ी दिखते हैं मानव प्रकृति ने छत्तीसगढ़ के खजुराहो भोरमदेव को अपनी गोद में ले लिया हो।
भोरमदेव मंदिर पर निबंध 10 लाइन
- छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाने वाला भोरमदेव (Bhoramdeo) पर्यटकों का खास आर्कषण का केंद्र व स्थल है।
- यह मंदिर कवर्धा से 18 किमी दूर मैकाल पर्वत श्रंखलाऔर प्रकृति की सुंदरता के बीच बसा है।
- 11 सदीं में बने इस भोरमदेव मंदिर में प्राचीन पाषाण सभ्यताओं की मूर्तियां हैं।
- इसके अलावा यहां मंडवा महल व झेरकी महल भी देखने योग्य है।
- यहां के दीवारों पर विभिन्न काम मुद्राओं में अनुरक्त युगलों का कलात्मक अंकन किया गया है। इसलिए इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है।
- भोरमदेव को कलचुरी वंश के काल में बनाया गया था|
- मंदिर का द्वार मुख पूर्व दिशा की ओर है।
- एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है।
- मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है।
- मंडप के बीच में 4 खंबे हैं तथा किनारे की ओर 12 खम्बे हैं, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल
भोरमदेव मंदिर कैसे पहुंचे
दोस्तों यह मंदिर छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में पड़ता है यह कवर्धा से लगभग 16 से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है दोस्तों आप यदि छत्तीसगढ़ के अलावा किसी अन्य राज्य से हैं तो आप हवाई यात्रा या फिर ट्रेन की सुविधा से आप छत्तीसगढ़ में रायपुर तक आ सकते हैं
और यहां से आप बस की सुविधा से कवर्धा तक जा सकते हैं और जैसा कि हमें पता है कवर्धा से भोरमदेव मंदिर की दूरी 16 से 18 किलोमीटर है तो हम यहां से बस की सुविधा से इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं हालांकि यहां पर बस बहुत ज्यादा नहीं चलती है दिन में 2 से 3 वर्ष की भोरमदेव को जाती है
और यदि आप अपनी सुविधा से अर्थात अपनी गाड़ी या फिर अपने कार से गए हैं तो कवर्धा से आपको लगभग 25 से 30 मिनट लग सकते हैं भोरमदेव पहुंचने में तो यदि आप छत्तीसगढ़ से ही हैं तो कोशिश कीजिए कि आप अपने साधन से ही जाएं जिससे आप आसपास के और भी दर्शनीय स्थल को अपनी इच्छा अनुसार और अपने समयानुसार घूम सकते हैं
और दोस्तों यहां तक पहुंचने के लिए आप गूगल मैप की सहायता भी ले सकते हैं जो कि आप को दिशा-निर्देश करने में बहुत ही सहायक होगा और आप बड़े ही आसानी से भोरमदेव मंदिर तक पहुंच सकते हैं |
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